नमस्कार दोस्तों आज मैं आपके साथ एक कविता share कर रहा हूँ।यह कविता मेरे पिता स्व जे पी मंडल ने लिखवाए थे ।वे as a blind teacher विद्यालय मे पदस्थापित थे।वे Blind from Child थे।
उन्होंने अपने जीवनकाल मे अनेकों रचनायें की जिसका एक छोटा सा अंश
मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ यदि आप को अच्छी लगे तो इसे खूब शेयर करें ताकि रचनाओं को प्रकाशित करने की और अधिक से अधिक लोगों तक पहुचाने की सेष रह गई उनकी इच्छा पूरी हो सके और उनकी आत्मा को शान्ति एवं खुशी मिले।
विश्व की वर्तमान दशा
धरा प्रकम्प है, प्रकृति जल रही है,
अट्टहास ने घेरा है दाम।
भयावह दृश्य है असीम विश्व का,
पता नहीं क्या होगा अंजाम।।
मानवता मुँह खोल खड़ा है
बर्बरता अब दिलों में भरा है,
अब तो ऐसा लगता है शायद ही,
बच पायेगा उत्कृष्ट अंश ।
हे गोपाल,
बस इतनी कृपा करो,
लोगों के दिलों में,
करुणा और दया भरो।
मानवता का सब पाठ पढ़े
साथ मिलकर आगे बढ़े,
शान्ति और सद्भाव का ,
हो जाये ऐसा संगम,
की फिर न सुनने को मिले,
कहीं से भी करुण क्रंदन।।
बस इतनी है आस तुमसे,
करो कुछ ऐसा काम,
प्यार और सहयोग की भावना से
आच्छादित हो यह यह देश,
प्रगति पथ पर,
बढ़ता रहे अविराम।।
तो दोस्तों यदि आपको यह रचना अच्छी लगे तो कमेंट करें ताकि उनकी अन्य रचनाओं को प्रकाशित कर सकूं।
धन्यवाद
very very good creation
Awesome
waooo nice linee