नमस्कार दोस्तों, यह भाई-बहन के बीच प्यार की ऐसी काव्य रूपी हृदयस्पर्शी कहानी है जिसे पढ़ते-पढ़ते आप उसमे खो जायेंगे और यह पता चल जायेगा की आखिर क्यों है इतना महत्वपूर्ण यह रक्षाबंधन का त्यौहार।
एक घर में रहते थे दो भाई,
पर उसकी नहीं थी एक भी बहना,
रहता था मायुश, करता था ईस्वर से सदा,
बस एक बहन की याचना।
जब भी आता था,
रक्षाबंधन का त्यौहार,
होता था घर में करून-क्रंदन,
दोनों भाई रोते थे जार-जार।
फिर आ गया वह दिन भी जब,
घर में हुआ बहन का आगमन,
खुश हुए दोनों, भरा मन में उल्लास,
और बना घर खुशियों का संगम।
अब शुरू हुई नाम रखने की प्रक्रिया,
दोनों भाइयों ने दिया अपना-अपना आइडिया।
एक उसका नाम करुणा रखने पर था अडिग,
तो दूसरे ने कहा नाम रखूँगा इसका सुप्रिया।
इसपर भाइयों के बीच हो गई तकरार,
यह तो था बस भाई-बहन का प्यार,
ऐसा हो गया उन दोनों के बीच घमासान,
जिसका मिल नहीं रहा था कोई समाधान।
फिर एक दिन छोटे ने बड़े से कहा,
क्यों लड़ते हो भैया,
दोनों का नाम मिलकर,
इसका नाम रख लेते हैं कर्णप्रिया।
अब तो जब भी,
आता था रक्षाबंधन का त्यौहार,
खुशियों से भर जाता था सारा घर-द्वार।
धीरे-धीरे बड़े हुए दोनों भाई,
और उनकी प्यारी बहना,
पर समय के साथ उनके बीच,
कभी भी प्यार हुआ कम, ना ।
आखिर आ गया वह दिन भी जब,
करनी थी बहन की विदाई,
आँखे तो नम थी सबकी मगर,
भाई-बहन के आँखों में तो मानो,
स्वयं गंगा उतर आई।
बाढ़ इस अश्रुगंगा की,
थमने का नाम ही नहीं ले रही थी,
कैसे रुकता भला यह तो अद्भुत प्यार था,
जो आँशु बनकर बह रही थी।
यह ख़ुशी थी विदाई की,
या गम था जुदाई का ?
नहीं, ये तो बचपन की वो अमिट यादें थी,
जो बार-बार झकझोर रही थी,
कितना भी मजबूत करे ह्रदय,
यह हर बार उसे तोड़ रही थी।
वो आँशु थे ख़ुशी के या गम के कोई नहीं जनता,
यह भाई-बहन का है वह सच्चा निर्मल प्यार,
जिसे बनाये रखने के लिये मनाते हैं सभी,
रक्षाबंधन का यह पावन त्यौहार।
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Amazing and unique story. I have never read before like this
Nice